इश्क का नशा चढ़ने लगा है दीवानगी बढ़ने लगी है शर्माती हुई पलके मन का करार चुराने लगी है मीठी मीठी बातें किसी न किसी बहाने से हर रोज नजदीक होने लगी है इश्क में झुकना पड़ा है उसकी हर जिद जायज थी मुझे गलतफहमियां बर्बाद कर रही थी धीरे-धीरे विश्वास होने लगा है मेरी सोच ही नाजायज थी ऐसा लगने लगा है दूर न रह पाऊंगा तुम्हारे प्यार की लत लग गई है अकेले में जिंदगी का गुजारा संभव नहीं होगा